गुरुवार, 24 मई 2012

रास्‍ते

हमे मंजि‍लो की चाह नहीं
हमे तो रास्‍तो से प्‍यार है।
अब सपने हुए है अपने से
वो चाहत का पुरस्‍कार है।
शब्‍द है ये कुछ अनगढे से
है अदब ये मेरे संस्‍कार है।
भि‍गो गया, तेरा तन बदन
तेरी मेहनत का सत्‍कार है।
आंखे बंद और मन बोला
तू ,तू है या मेरा आकार है।
छु लि‍या था अधरो को यूं
जैसे ये जीने का आधार है।
तन में भी तो तडप होगी
मन तो कब से लाचार है।
बांहें तो अब भी इठताली है
तेरे स्‍पर्श को भी आभार है।
कब्र भी मि‍टटी सूखने लगी

बैशाखि‍यां

बहुत दि‍नो बांद आज छत पर आए थे
हम चांद नहीं कि कोई इन्‍तजार करता
''अरूण''
तेरे दि‍ल में तो अब सन्‍नाटा पसरा होगा
मेरे ख्‍यालों को घर नि‍काला जो मि‍ला है
''अरूण''
खुदा भी अपनी भूल पर पछताया होगा
अपने लि‍ये बनाया और यहां भेज दि‍या
'' अरूण''
मैं जानता हूं कि प्‍यार तो कम नहीं होगा
जज्‍बात छुपाने का हुनर अब सीख लि‍या
''अरूण''
मेरे जख्‍म भर गये है तुम्‍हारे मरहम लगाने से
जो सीने में छुए है, वो अब भी दर्द से कराहते है
''अरूण''
इन बैशाखि‍यों ने मेरी चुगली कर दी
पैरों ने मेरे जब चलना सीख लि‍या
''अरूण''

कुछ और जज्‍बात 


उसने मोहब्‍बत में शर्ते लगाई थी बहुत सी
आखि‍र नफा आंकना जरूरी है व्‍यापार में
''अरूण''
सुबह हुई और रात भी होगी कुछ देर में
फि‍र क्‍यूं जाग कर सोने की आदत डाली
''अरूण''
एक बार फि‍र देख लो कि दि‍ल धडक रहा है
आंखें झूठ बहाती है आंसू, दि‍ल के फरेब में
''अरूण''
दि‍वाने तो हंसे थे वफा की उम्‍मीद में
सौदागर ये रोऐ थे नफे की उम्‍मीद में
''अरूण''
तेरी इन्‍कार ने ये क्‍या कर दि‍या
इन्‍तजार का सामान कर दि‍या
''अरूण''

बुधवार, 23 मई 2012

Some lines

क्‍या क्‍या न कहा, क्‍या क्‍या न कि‍या
एक खता ने ही हमे जीना सीखा दि‍या
''अरूण''

खुदा की गलति‍यां हम माफ कर अपनाते है

फिर अपनी गलति‍यां उससे, क्‍यूं छि‍पाते है
''अरूण''
मैंने तुम्‍हें जाने क्‍या क्‍या कहा था
पर तब ,तुम तुम न थी, मैं ही था

'' अरूण''
मैंने तुम्‍हें जाने क्‍या क्‍या कहा था
पर तब ,तुम तुम न थी, मैं ही था

'' अरूण''
दर्द की इन्‍तहा क्‍या जाने, दर्द देने वाले

दुकां अपनी उठा गये वो दवा देने वाले
''अरूण''