अट़टाहास करता, मुखौटा हुआ राम,
मन में मुस्कुराता, मंद मंद रावण
गर्वित राम पूतले को जला कर
मन में हर्षित रावण को पाकर
परछाईयों का है ये खेल
सीता का अग्नि स्नान
फिर छायां जानकी से मेल
असत्य फूका जाता है
और मन में सीता को
दर्शाकर जन मानस भी
तो लूटा ही जाता है।
तो फिर इस आभाषित
रावण को भष्म करने का
क्यूं प्रहसन दोहरातें हो
मन ही मन रावण की
छायां को खीर खिलाते हो।
अब हर मन पर रावण है
राम मुखौटा मन रावण है
जनता नहीं भोली अब
अग्नि अभिसार भूली है
सीता का वो विकार भूली है
राम तुम्हारे ही समान
जन मानस क्रिडा कर गया
मुह में राम सभी के है
पर मन में रावण बस गया।
मन में मुस्कुराता, मंद मंद रावण
गर्वित राम पूतले को जला कर
मन में हर्षित रावण को पाकर
परछाईयों का है ये खेल
सीता का अग्नि स्नान
फिर छायां जानकी से मेल
असत्य फूका जाता है
और मन में सीता को
दर्शाकर जन मानस भी
तो लूटा ही जाता है।
तो फिर इस आभाषित
रावण को भष्म करने का
क्यूं प्रहसन दोहरातें हो
छायां को खीर खिलाते हो।
अब हर मन पर रावण है
राम मुखौटा मन रावण है
जनता नहीं भोली अब
अग्नि अभिसार भूली है
सीता का वो विकार भूली है
राम तुम्हारे ही समान
जन मानस क्रिडा कर गया
मुह में राम सभी के है
पर मन में रावण बस गया।