शनिवार, 3 दिसंबर 2016

गजल

मन के सपनो में जब भी, सामने तुमकों पाता हूं

शब्‍दों की लहरे उठती है, गजल नई रच पाता हूं

सपनों का अतं खुली आखों में बिखरता जाता है
...
आगाजे गजल तुम होती हो, अन्‍दाज मैं बन जाता हूं

गांव छोड् शहर में भटके सपने मेरे सारी रात

आंख खुली तो मन चकरा, मंजर तो वही पाता हूं

चंद शब्‍दों को कागज पर लिखता हूं मिटाता हूं

कागज के उददगारों में कागज कोरा रह जाता हूं

अनुवादित सा होकर जब छवि तुम्‍हारी बन जाता हूं

कलम से आंसू बहते है और पीड् नई फिर पाता हूं

सोमवार, 1 सितंबर 2014

मेरी कब्र पर आकर वो आँसू बहा गए 

मोहब्बत की आखिरी रस्म निभा गए 

ताजिंदगी उनके इकरार को तरसे हम 

नगमा इश्क़ का मौत पर गुनगुना गए 

भीगी नहीं थी पलके उनकी जनाज़े में 

रोये कि धुल गया जख्म दवा लगा गए 

बेवफ़ाई ही तो है रस्म इस दुनिया की 

जला कर चिराग ऐसे वफा निभा गए 

मेरी रूह को ना हो बेचैनी तनहाई की

कब्र के पत्थर पे अपना नाम खुदा गए

शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

Tumko kah diya

क्या बुरा किया जो मैने तुझको कह दिया
तेरा था जो मन में मैने तुझको कह दिया
जनता हूँ चाँद को चाहना दस्तूर नही कोई
चाँदनी के कानो में मैने तो सब कह दिया
जनता हूँ खवाबो की कोई उमर नही होती
इन्ही ख्वाबो को मैने अपना दर्द कह दिया
तुम्हारी नाराज़गी जायज़ है मेरी नादानी है
इन्ही नादानियों नें दिल का हाल कह दिया
कब किया मैने इंतज़ार की तू भी कुछ कहे
तेरे कहने से पहले मैने सब कुछ कह दिया
मुआफ़ कर दो मेरी ख़ताओ को अपना मान
जो सच था वही तो मैने सच सच कह दिया
क्या बुरा किया जो मैने तुझको कह दिया
तेरा था जो मन में मैने तुझको कह दिया

मंगलवार, 30 जुलाई 2013

adhure khwab


बादलों में ढूढें अधुरे ख्वाब
सजालें अरमान अपने से
तुम ढूंढ लोगे ताजमहल
बिखरते इन बादलो मे
और मेरी तलाश खत्म होगी
बिखरते बादलो में, जो
आभाष देंगें तिनको और रस्सी का
जिनसे मेरी झोंपडी फिर बनेगी
देखो अब इऩ्हें हवा न देना
बरसे तो बिखरेगा ताजमहल
मेरी झोपडी गर टपकी तो
कैसे ठापी जाएगी सूखी रोटियां

रविवार, 3 जून 2012

तेरा नाम

तुम्‍हारे नाम का अर्थ ढूढनें में
और खुद का नाम भूलते रहे।
कभी तुझमें कभी तेरे नाम में
खुद कों तो कभी मेरे नाम को
ज्‍यों सागर में सि‍मटती नदी सी
ज्‍यों ऋचा वेद की रचती जीवन
.ज्‍यों देह में आबन्‍धि‍त ज्‍योति
ज्‍यों पाश में उलझता सा मोह
शायद यही होगा नाम का अर्थ
तो खडें करता है मरे मन में
मेरे नाम के वि‍लुप्‍ति के प्रश्‍न
तभी तो तेरा नाम लील जाता
मेरे नाम को अर्थ अपना ढूढते

गुरुवार, 24 मई 2012

रास्‍ते

हमे मंजि‍लो की चाह नहीं
हमे तो रास्‍तो से प्‍यार है।
अब सपने हुए है अपने से
वो चाहत का पुरस्‍कार है।
शब्‍द है ये कुछ अनगढे से
है अदब ये मेरे संस्‍कार है।
भि‍गो गया, तेरा तन बदन
तेरी मेहनत का सत्‍कार है।
आंखे बंद और मन बोला
तू ,तू है या मेरा आकार है।
छु लि‍या था अधरो को यूं
जैसे ये जीने का आधार है।
तन में भी तो तडप होगी
मन तो कब से लाचार है।
बांहें तो अब भी इठताली है
तेरे स्‍पर्श को भी आभार है।
कब्र भी मि‍टटी सूखने लगी

बैशाखि‍यां

बहुत दि‍नो बांद आज छत पर आए थे
हम चांद नहीं कि कोई इन्‍तजार करता
''अरूण''
तेरे दि‍ल में तो अब सन्‍नाटा पसरा होगा
मेरे ख्‍यालों को घर नि‍काला जो मि‍ला है
''अरूण''
खुदा भी अपनी भूल पर पछताया होगा
अपने लि‍ये बनाया और यहां भेज दि‍या
'' अरूण''
मैं जानता हूं कि प्‍यार तो कम नहीं होगा
जज्‍बात छुपाने का हुनर अब सीख लि‍या
''अरूण''
मेरे जख्‍म भर गये है तुम्‍हारे मरहम लगाने से
जो सीने में छुए है, वो अब भी दर्द से कराहते है
''अरूण''
इन बैशाखि‍यों ने मेरी चुगली कर दी
पैरों ने मेरे जब चलना सीख लि‍या
''अरूण''