गुरुवार, 24 मई 2012

रास्‍ते

हमे मंजि‍लो की चाह नहीं
हमे तो रास्‍तो से प्‍यार है।
अब सपने हुए है अपने से
वो चाहत का पुरस्‍कार है।
शब्‍द है ये कुछ अनगढे से
है अदब ये मेरे संस्‍कार है।
भि‍गो गया, तेरा तन बदन
तेरी मेहनत का सत्‍कार है।
आंखे बंद और मन बोला
तू ,तू है या मेरा आकार है।
छु लि‍या था अधरो को यूं
जैसे ये जीने का आधार है।
तन में भी तो तडप होगी
मन तो कब से लाचार है।
बांहें तो अब भी इठताली है
तेरे स्‍पर्श को भी आभार है।
कब्र भी मि‍टटी सूखने लगी

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