सोमवार, 1 सितंबर 2014

मेरी कब्र पर आकर वो आँसू बहा गए 

मोहब्बत की आखिरी रस्म निभा गए 

ताजिंदगी उनके इकरार को तरसे हम 

नगमा इश्क़ का मौत पर गुनगुना गए 

भीगी नहीं थी पलके उनकी जनाज़े में 

रोये कि धुल गया जख्म दवा लगा गए 

बेवफ़ाई ही तो है रस्म इस दुनिया की 

जला कर चिराग ऐसे वफा निभा गए 

मेरी रूह को ना हो बेचैनी तनहाई की

कब्र के पत्थर पे अपना नाम खुदा गए

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