गुरुवार, 21 जुलाई 2011


पिता

तूम क्‍यूं गुस्‍साते थे, फिर चुप हो जाते थे
तुम्‍हारे जाने के बाद अहसास हुआ है
अब मैं गुस्‍साता हूं शायद तुम्‍हारे लहू का असर है
चुप क्‍यूं रहते थे आभास हुआ
आज तुम्‍हारी बहुत याद आई है
जो तब तब आती है जब जब मुझे मनमाफिक नहीं मिलता
नकार दिया जाता है मेरा अस्तित्‍व,
छोटे भाई बहनों को चाह कर कुछ नहीं कह पाता
तब तुम्‍हारे पिता होने का राज जानने की कोशिश करता हूं
क्‍यूं तुम्‍हे नींद की गोलियों लेकर सोना पडता था
क्‍यों तडके उठ कर या आधी रात को भी, कभी कभी
बैकार टहलाना होता था, मैने अब जाना
तुम अपने अन्‍तर की सलवटों को
चेहरे की सलवटों में छिपा जाते थे
और मेरी उन तमाम हरकतो को भी
जो बेटे की तरह की भी नहीं होती थी
ईश्‍वर की नियती मान भोग जाते थे
क्‍यों कि तुम जानते थे की मेरी नफसों में
बह रहा खून तुम्‍हारा है
मैं तुम्‍हारे आगाज को अन्‍दाज दे रहा हूं
तुम कैसे मुस्‍कुराते रहते थे
तुम्‍हारे बैंक बैलेंस को जब देखा तो आश्‍चर्य हुआ
तूम क्‍यों मेरी ख्‍वाईशों के आगे हार जाते थे ा
तुम मर गये दुनिया के लिये
तुम्‍हारी देह अब सिर्फ तस्‍वीरों में है
पर मैं तुम्‍हे जिन्‍दा रखूंगा
और तुम्‍हारी तरह पिता बनूगां
और मेरा लहू जिन नफसों में बहेगा
उसे भी ताकीद करूंगा तुम्‍हारी तरह बडे होने का

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