थके पांव, निढाल काया और खाली हाथ
घर में घुसते ही पिता की उम्मीाद भरी
आखें बोली ''आज भी कुछ नहीं कमाया''
......पत्नी ने पेंट टांगते हुए टटोला
''शायद आज भी कुछ नहीं बचाया''
बच्चे तो खाली हाथ देख समझ गये
पापा कुछ नही लाया
किनारे, पंगल पर बिमार मां पडी थी
आवाज में पूरी जान डालते हुए बोली '' बेटा कुछ खाया ''
यूं तो सब ही चिन्ताओ से बावस्ता है
पर मां की चाहत की गहराई ज्यादा है
माँ की चाहत की गहराई का अनुमान लगाना असंभव है.......बेहतर रचना हेतु बधाई........
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