रास्ते
हमे मंजिलो की चाह नहींहमे तो रास्तो से प्यार है।
अब सपने हुए है अपने से
वो चाहत का पुरस्कार है।
शब्द है ये कुछ अनगढे से
है अदब ये मेरे संस्कार है।
भिगो गया, तेरा तन बदन
तेरी मेहनत का सत्कार है।
आंखे बंद और मन बोला
तू ,तू है या मेरा आकार है।
छु लिया था अधरो को यूं
जैसे ये जीने का आधार है।
तन में भी तो तडप होगी
मन तो कब से लाचार है।
बांहें तो अब भी इठताली है
तेरे स्पर्श को भी आभार है।
कब्र भी मिटटी सूखने लगी
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