शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

जख्‍म

कोई पहचान का होगा, कोई अनजाना भी होगा

जरा तूम गौर से देखों, जख्‍म पुराना ही होगा

दर्द जिसका अब आदत, दिल में धडकनों सा है
...
अहसासों का वो पैमाना, अब गिराना ही होगा।


आखिरी वक्‍त है अब, जरा तूम प्‍यार कर बोलो

समझ जाओ ना अब तो, जरा इकरार कर बोलो

न होगी फिर कोई हुज्‍जत, न कोई पुकारेगा
फकत यादों का अश्‍क होगा, जो तुमको रूलाएगा

गंध धरती की पाकर के, बादल यूं उमडता है

सितम तो कुछ रहा होगा, झरझर बरसता है

ये इकतरफा नहीं इश्‍क, घरती की तडफती है

प्‍यार बन कर गुबार, बादलों में जा मिलता है


ओढ कर बादलों की चादर सोने की चाहत है

उलझ गई सलवटे सब तो सपना ही होगा

मेरे जख्‍मों में दर्द का अहसास नहीं होता
बन गया हू पत्‍थर तुम्‍हे खुदा कहना ही होगा

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