गुरुवार, 21 जुलाई 2011

तुम्‍हे क्‍यों बताए

तुम्‍हे क्‍यों बताए
ठंडी बयार जब चलती है, तेरे किस्‍से कह जाती है

तन में सिहरन सी उठ जाती है, हॉ ऐसा ही होता है

...पर तुम्‍हे क्‍यों बताए
जुल्‍फ तेरी लहराती है मन घायल कर जाती है

मन मोहक तेरी छवि, मोह ले जाती है हॉ ऐसा होता है

पर तुम्‍हें क्‍यों बताए
घर के सामने गुजरने की आहट, दिल पर दस्‍तक देती है

ओझल होते अंतिम कदम तक नजरे छुप देखती है

फिर वह राह बनती है द़ष्टिपथ लौट तेरे आने तक ऐसा होता है

पर तुम्‍हें क्‍यों बताए
कदमों से कह दो ना वो थोडी देर ठीठक जाए, इस ओर मुड जाए

यही ठहरे और बढ् आऐ ख्‍याल ये भी आते है। हॉ ऐसा होता है

पर तुम्‍हें क्‍यों बताए

क्‍या तुम सुन लोगे, फिर हमे अपना चुन लोगे

फिर क्‍यूं तुमसे कुछ छुपाउं सब तुम्‍हे बताउ ऐसा भी होता है

पर तुम्‍हें क्‍यों बताए

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