गुरुवार, 21 जुलाई 2011

इबादत

मेरी इबादत पर भी तू एतबार कर

चाहत है मेरी थोडा मुझसे प्‍यार कर
सब कायनात तेरी, तो कमतरी क्‍यूं है
न दे महल,रोटी से तो न बैजार कर
...मेरी रसोई में गंध है हलवा पूरी की

तवा उसका टूटा है मत उसे नाराज कर

कहीं है सैलाब में बह गई सब बस्तियां

रीते मटके को न प्‍यास से लाचार कर
मुझे क्‍यों छोड् दिया रास्‍ते में लाकर

मै भी मोमीन हूं थोडा तो लिहाज कर

मुफलिसी में भी उसने तुझे याद किया
बक्‍श दे खोल दिल, हस्‍ती का लिहाज कर

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