गुरुवार, 21 जुलाई 2011

बादल

फिर आज बसरेगें बादल, मेरी आखों में पानी है

ठंडी बह रही हवाऐं, तेरे आने की ही निशानी है
झड गये पीले पत्‍ते, अब जीने की ख्‍वाईश है

...खिल भी है कलिया अब आई रूत सुहानी है

ना रूठो, मोहब्‍बत के दो बोल, बोल भी दो
बहक गये थे मेरे पैर, अहसासों की नादानी है
परींदों की आवाजें, गुम हो गई है इस घर से

कहां है नीम का पेड्, किसकी ये कारस्‍तानी है

आ भी जाओ मेरे पास, फिर से यूं गले मिलो

भूलो गिला शिकवा सब, बाते ये आनी जानी है

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