मन के सपनो में जब भी, सामने तुमकों पाता हूं
शब्दों की लहरे उठती है, गजल नई रच पाता हूं
सपनों का अतं खुली आखों में बिखरता जाता है
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आगाजे गजल तुम होती हो, अन्दाज मैं बन जाता हूं
गांव छोड् शहर में भटके सपने मेरे सारी रात
आंख खुली तो मन चकरा, मंजर तो वही पाता हूं
चंद शब्दों को कागज पर लिखता हूं मिटाता हूं
कागज के उददगारों में कागज कोरा रह जाता हूं
अनुवादित सा होकर जब छवि तुम्हारी बन जाता हूं
कलम से आंसू बहते है और पीड् नई फिर पाता हूं
bhut achchi,,,,anuwadit sa hokar chavi tumhari ban jata hu.......
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