गुरुवार, 21 जुलाई 2011

तेरा रूप

फागुनी हवा और जाडे की धूप है ,
मधुर संगीत से सजल तेरा रूप है
शारदीय पूनम जुन्हाई तेरी हंसी
गलियों में, पगण्डि‍यों में ,
प्रात: में सांझ में बसी
ओस की बूंद सी तेरी बोली
कोयल के कण्ठ में समाई ,
जैसे नदियां में नैया डोली
भरपूर... नेह क‍ा ढेर है ,
जैसे अभिलाषा अनूप है
तेरा ही रूप है,
सरोवर में तेरते दो दिये है
नैन गहराई झील सी
प्रतिबिम्बित मन कानन
खन्ज्न सब व्यैन्ज न बैचेन
उषा रश्मियों से अधराए तेरे अधर
प्रतीक्षारत जीवन साझ ,
पी लेंगे दुपहरी का जहर
हरिण सी तेरी कटि है ,
लहर ज्यों उठ कर गिरी है
प्रतिक्षित प्रेम का स्‍वरूप तेरा रूप है
फागुनी हवा और जाडे की धूप

तेरा ही रूप

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